सम्यक दर्शन यानि सच्ची श्रद्धा होती है -ः पुनित प्रज्ञा श्रीजी मसा साध्वी,, श्रीजी ने सम्यक दर्शन पद की व्याख्या की

JHABUA ABHITAK

झाबुआ से रिंकू रुनवाल 
झाबुआ। सम्यक दर्शन  यानि सच्ची श्रद्धा होती है। हमे देव-गुरू एवं धर्म के प्रति सच्ची आस्था रखना चाहिए। समकित (श्रद्धा) के बिना किया हुआ धर्म-तप-जप-आराधना सभी निष्फल माने गए है। श्रद्धा के बिना की गई क्रिया बिना नींव के धर्म (मकान के समान) है, अर्थात बिना नीव के मकान नहीं टिक सकता। इसी प्रकार बिना समकित (श्रद्धा) के बिना धर्म नहीं टिक सकता है।
उक्त प्रेरणादायी उद्गार विष्व पूज्य दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीष्वरजी मसा द्वारा प्रतिष्ठित स्थानीय श्री ऋषभदेव में जारी श्री सिद्ध चक्र शाष्वती ओलीजी की आराधना के छटवेें दिन तपोनिष्ठ साध्वी पपू विदुषी पुनित प्रज्ञा श्रीजी मसा ने धर्म सभा में व्यक्त किए। आराधना के छटवें दिन उन्होंने सम्यक दर्षन पद की व्याख्या की। साध्वी श्रीजी ने उपस्थित श्रावक-श्राविकाओं से कहा कि विपरित परिस्थितियों में भी धर्म के प्रति आस्था नहीं छोड़ना चाहिए, यहीं प्रभु के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धा है एवं समकित का सूचक है एवं जो जीव देव-गुरू-धर्म के प्रति सच्ची श्रद्धा रखता है, वह जीव कर्म क्षय कर मोक्ष के अविचल शाष्वत सुख को प्राप्त करता है।
सवां लाख जाप किए गए
श्री संघ के रिंकू रूनवाल ने बताया कि नौ दिवसीय आराधना के छटवें दिन आराधकों ने सम्यक पद की आराधना करते हुए 67 स्वस्तिक, 67 खमासमणा, 67 लोगस्य का काउसग्ग कर ‘नमो दंसणम’ पद के 1 लाख 25 हजार जाप कर आयंबिल का तप किया।

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