ऐरी तुम कौन हो री, फुलवा बिनन हारी, नेह लगन को बन्यो बगीचों फुल रही फुलवारी’’ भजन के साथ गोवर्धननाथजी के दरबार में मनाया गया सांझी महाउत्सव भगवान श्रीकृष्ण के जय जय कारो से वातावरण हुआ भक्तिमय

rakeshpotdda

अमित शर्मा। झाबुआ अभीतक
राकेश पोद्दार

झाबुआ । ’’ सांझी भली बनाई रे, श्री बृजभान लली की’’ के संगीतमय भजन के साथ सोमवार  सर्वपितृ अमावस्या पर समापन होने वाली संझा पर्व के अवसर पर स्थानीय श्री गोवर्धननाथ जी की हवेली में बिराजित भगवान श्री गोवर्धननाथ जी के दरबार में पुष्टिमार्गीय श्री वल्लभचार्य सम्प्रदाय की परंपरा के अनुसार श्रद्धा एवं भक्ति के साथ सांझी पर्व समापन का आयोजन सायंकाल उल्लासमय वातावरण के साथ संपन्न हुआ ।  हिन्दु मान्यता के अनुसार क्वार महीने के कृष्ण पक्ष की प्रथमा तिथि से सर्वपितृ अमावस्या तक क्वारी कन्याओं द्वारा गोबर से निर्मित संझा का पर्व मनाये जाने की परम्परा रही है । किन्तु पुष्टिमार्गीय परम्परा के अनुसार  गोवर्धननाथ जी के दरबार में सिर्फ 9 दिनों तक सांझी पर्व मनाया जाता है और अन्तिम दिन सर्व पितृ अमावस्या के दिन 9 दिनों की सांझी याने संजा को आकर्षक कलाकोट सुंदर पुष्पों एवं केले की झांकी लगा कर मनाये जाने की पुरातन परम्परा रही है । मंदिर के प्रभू सेवक दिलीप आचार्य ने जानकारी देते हुए बताया कि श्री गोवर्धननाथजी के दरबार में इस दिन सांझी पर्व मनाने की परम्परा इसलिये स्थापित है कि मान्यता अनुसार भगवान श्रीकृष्ण स्वयं  गोपीभाव से राधेरानी के यहां सांझी उत्सव के लिये पधारते है । इस दिन नौ तरह की कलाकृतिया कलाकोट में बनाई जाती है तथा पुष्पों से आकर्षक रांगोली बना कर भगवान के पधारने का स्वागत समारोह होता है। मान्यता यह भी है कि  स्वयं राधे रानी भगवान श्रीकृष्ण को पाने के लिये सांझी को देवी स्वरूप में बनाती है और भगवान भी स्वयं गोपी भाव से इस अवसर पर पधारते ही है ।
श्री आचार्य ने बताया कि श्री वल्लभाचार्य पुष्टिमार्गीय परंपरा के अनुसार इस सम्प्रद्राय के लोग गोपी भाव से छोटे से बडे सभी पर्व को पूरी श्रद्धा,विश्वास एवं भक्तिभावना के साथ मनाते है । इसी कडी में स्थानीय गोवर्धननाथजी की हवेली में सुंदर कलाकोट का निर्माण जमुना महिला मंडल की सदस्याओं द्वारा श्रद्धा भावना के साथ भगवान के समक्ष बनाया गया है। इस अवसर पर पण्डित रमेश त्रिवेदी, गोकूलेश आचार्य द्वारा संगीत के साथ ’’ ऐरी तुम कौन हो री, फुलवा बिनन हारी, नेह लगन को बन्यो बगीचों फुल रही फुलवारी’’ जैसे भजनों के माध्यम से भगवान के आगमन पर स्वागत किया गया । भगवान के पट खुलते ही उपस्थित महिला एवं पुरूष श्रद्धालुओं द्वारा कृष्ण भगवान के जय जय कारो से पूरे वातावरण को भक्तिमय कर दिया । भगवान गोवर्धननाथजी की आरती के साथ ही देवी स्वरूपा सांझी की भी आरती की गई ।
श्री आचार्य ने  बताया कि महा मंगल आरती के साथ ही पितृ पक्ष के अन्तिम दिन सांझी पर्व का समापन होता है और दूसरे दिन नवरात्रोत्सव में भगवान के नौ विलास प्रारंभ होकर देवी पूजा का 9 दिनों तक क्रम बना रहता है । दशहरे के दिन अस्त्र-शस्त्रो ं के साथ भगवान रामावतार की तरह गोबर के 10 मुंड का प्रतिकात्मक रूप  से  वध करते है । शरद पूर्णिमोत्सव संपन्न होने के बाद दीपावली, गाय गोहरी एवं अन्नकुट पर्व पर भी धार्मिक आयोजन होते है। विशेष बात तो यह है कि दीपावली पूर्व की एकादशी से दीपावली की अमावस्या तक भगवान जगत सेठ के रूप में मंदिर मे बिराजित रहते है तथा प्रत्येक श्रद्धाल्रु की मनोकामनायें पूरी करते है।
संाझी उत्सव में बडी संख्या में एकत्रित महिलाओं ने भक्ति भावना के साथ भजनों की प्रस्तुति दी । प्रसादी वितरण के साथ सांझी उत्सव का समापन हुआ ।



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