नमो अरिहंताणं पद में सर्व सिद्धी समाहित है -ः पपू पुनित प्रज्ञा श्रीजी मसा,,, नौ दिवसीय श्री शाष्वत ओलीजी की तपस्या हुई प्रारंभ,,, 60 से अधिक आराधक कर रहे तपस्या

JHABUA ABHITAK
रिंकू रुनवाल [झाबुआ प्रतिनिधि ]
झाबुआ। विष्व पूज्य दादा गुरूदेव श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीष्वरजी मसा द्वारा प्रतिष्ठित स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय में नौ दिवसीय शाष्वत ओलीजी की तपस्या आज से से प्रारंभ हुई। शुभारंभ श्री सिद्धचक्रजी के पट्ट के समक्ष अष्टप्रकारी पूजन कर किया गया। इसके पश्चात् आराधकों ने तपस्या आरंभ की। प्रथम दिन 60 से अधिक आराधक ओलीजी की तपस्या में शामिल हुए।
यह जानकारी देते हुए श्री संघ के युवा रिंकू रूनवाल ने बताया कि प्रातः मंदिरजी के तल पर स्थित श्री सिद्धचक्र पट्ट के समक्ष प्रातः अभिषेक, केसर पूजन, पुष्प पूजन, शांति कलष, स्नात्र पूजन के बाद अष्टप्रकारी पूजन एवं आरती का आयोजन हुआ। इसके पश्चात् आराधकों ने स्वस्तिक का निर्माण कर आराधना प्रारंभ की। 
तपस्या करने से आधि-व्याधि दूर होती है
श्री राजेन्द्र सूरी धर्मषाला में प्रवचन देते हुए साध्वी मणिप्रभा श्रीजी मसा की सुषिष्या पुनित प्रज्ञा श्रीजी मसा मसा ने अपने प्रवचन में श्री नमस्कार महामंत्र के प्रथम पद ‘नमो अरिहंताणं’ पद की व्याख्या की एवं बताया कि इस पद में सर्व सिद्धी समाहित है। तीन लोक के नाथ ऐसे अरिहंत परमात्मा को हमे अपने ह्रदय में बिठाना है। श्री शाष्वती सिद्धचक्र नवपदजी की तप आराधना करने वाले तपस्वी की सभी आधि-व्याधि दूर हो जाती है। श्री नवपदजी के मंत्राक्षर एवं जाप से सभी सिद्धीयां आराधक प्राप्त कर लेता है। विषिष्ट मंत्राक्षर की 12 हजार 500 माला गिनने पर वह मंत्र सिद्ध हो जाता हे। 
10 साल बाद हुआ शहर में आगमन
ज्ञातव्य है कि साध्वी श्रीजी का वर्ष 2008 में पूर्व में झाबुआ में चार्तुमास हो चुका है। जिसके करीब 10 साल बाद पुनः साध्वी श्रीजी का झाबुआ मंे मंगल प्रवेष हुआ है। साध्वी श्रीजी मसा द्वारा 9 दिवसीय नवपद शाष्वत ओलीजी की तप आराधना में अपनी निश्रा प्रदान की जाएगी। यह आराधना 23 मार्च से प्रारंभ हो गई है। जिसके लाभार्थी श्रीमती कमलाबेन बाबुलाल मुथा परिवार रहेगा। 
तप-जप एवं आराधना करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है 
इस अवसर पर पूज्य साध्वी नंदी यषा श्रीजी मसा ने कहा कि मंदिर में जाए तो पहले अपना अहंकार त्याग करके जाए। यदि जीव अहंकार को छोड़कर प्रभु दर्षन करता है, तो उसका देव दर्षन सार्थक होकर मोक्ष मार्ग प्रषस्त करता है। कर्मों की निर्जरा करनी है तो तप-जप की आराधना के साथ क्रोध, मान, माया एवं लोभ रूपी कषाय को त्यागना होगा, तभी मोक्ष के अनंत सुख को जीव प्राप्त कर सकता है। दोपहर में श्राविकाओं को साध्वी पुनित प्रज्ञा श्रीजी मसा द्वारा धार्मिक संस्कारों की जानकारी दी जा रहीं है।

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