मनुष्य को क्रोधादि से मुक्त रहकर प्रभु के ध्यान में लीन रहना चाहिए - आचार्य श्री ऋ़षभचन्द्र सूरीवरजी मसा

JHABUA ABHITAK

अमित शर्मा
झाबुआ। मनुष्य को क्रोधादि से मुक्त रहकर प्रभु के ध्यान में तल्लीन रह कर साधना  चाहिए। आत्मा से परमात्मा बनने की कला मनुष्य जीवन में ही प्राप्त हो सकती है।
उक्त उद्गार स्थानीय श्री ऋषभदेव बावन जिनालय के समीप पोषध शाला भवन में बुधवार को सुबह प्रवचन देते हुए गच्छाधिपति आचार्य श्री ऋषभचन्द्र सूरीवरजी मसा ने व्यक्त किए। उन्होंने क्रोध के दुष्परिणाम के बारे में एक उदाहरण समझाया कि एक परिवार में पति-पत्नी और बालक थे। एक बार पति को कहीं दूसरे गांव जाना था। पत्नि को बोला यह 5 हजार रू. रखो, मैं थोड़े दिन के लिए दूसरे गांव जा रहा हूॅ। पत्नी रसोई बना रहीं थी, उसने वहीं पास में रख दिए और किसी काम से बाहर गई। प्यारा सा छोटा बालक उसे ना समझ था, उसने देखा पास में कागज का वह 50 रू. गड्डी थी, जो 5 हजार रू. की थी, उसे सोचा की मां भी कागज जलाती है तो आग अधिक तेज जल जाती है। उसने भी वह नोट का बंडल आग में डाल दिया। कुछ ही क्षण में जब मां आई तो देखा, वह नोट चूल्हे में डाल दिए थे और जल रहे थे, मां ने आकर देखा तो उसे क्रोध आया और बालक को जोर से गाल पर थप्प जड़ दिया। बालक सहन नहीं कर पाया और गिरते ही मर्मकारी चोट से मर गया। पति महाय ने देखा तो क्रोध में आपे से बाहर होकर पास में पड़ी तलवार से पत्नी को मार डाला। पुलिस ने आकर मामला दर्ज किया और पति महाय को आजीवन कारावास हो गया। क्रोध के दुष्परिणाम से एक परिवार खत्म हो गया। अंतः क्रोध, मान, माया और लोभ से बचकर स्वयं को परमात्मा की शरण स्वीकार कर धर्म में लीन हो जाना चाहिए। हमे हमारे विचारों को सम परिणाम अर्थात शांत चित्त से आत्मा की अनुभूति में लगाना चाहिए। 
दूसरों की आलोचना करने से बचे
मुनि श्री रजतचन्द्र विजयजी मसा ने चातुर्मास में करने योग्य कार्य के बारे में समझाया कि आत्म तत्व को प्राप्त करने का यहीं मानव भव है। आत्मा की अनुभूति और अनुभव से ही हम परमात्म दा को प्राप्त कर सकते है। इसी भव को यदि साध्य करेंगे तो सिद्धी दूर नहीं है। हमारा दा बड़ी विचित्र है। हम सभी सुख चाहते है, सुखी बनना चाहते है, पर दूसरों को दुःख देते है। दूसरो की आलोचना करते है। उपकार करते नहीं तो सुख कहां से प्राप्त होगा। दुःख दोगे तो दुःख प्राप्त होगा। अतः जीवों की हिंसा की प्रवृत्ति को छोड़कर सभी जीवों को अभयदान देने से दुःख दूर होकर सुख प्राप्त होगा।
बहुमान किया गया 
श्री संघ के युवा रिंकू रूनवाल ने बताया कि बुधवार को अट्ठम तप के तपस्वी श्रीमती प्रेमलता धारीवाल एवं आयंबिल तप के तपस्वी श्रीमती कमलाबेन राठौर, किरण राठौर एवं मंजु राठौर का लाभार्थी श्रीमती सरिता हेमेन्द्र बाबेल परिवार द्वारा बहुमान किया गया। सर्व सिद्धीदायक, कष्ट निवारक, चमत्कारिक महामांगलिक में 16 जुलाई, रविवार को आचार्य श्री ऋषभचन्द्र सूरीजी निश्रा प्रदान करेंगे। जिसकी आमंत्रण पत्रिका पर पूज्य आचार्य श्रीजी द्वारा वाक्षेप किया गया एवं श्री संघ के अध्यक्ष धर्मचन्द मेहता, सुभाष कोठारी, संजय कांठी, आोक राठौर, सुरेन्द्र कांठी, तेजप्रका कोठारी, धर्मेन्द्र कोठारी, नरेन्द्र पगारिया, कमले कोठारी आदि ने विमोचन किया। महामांगलिक के लाभार्थी कमले कोठारी परिवार रहेंगे। प्रवचन पश्चात् गुरूदेव श्री राजेन्द्र सूरीवरजी मसा की आरती श्रीमती चंद्रकांताबेन कांठी परिवार ने उतारी।
सिद्धी तप की आराधना कल से 
परम् पूज्य गच्छाधिपति आचार्य श्रीमद् विजय ऋ़षभचन्द्र सूरीवरजी मसा एवं पपू मुनिराज श्री रजतचन्द्र विजयजी मसा, पूज्य साध्वी श्री रत्नरेखा श्रीजी मसा आदि मुनि मंडल तथा साध्वी मंडल ठाणा-5 की निश्रा में श्री सिद्धी तप की महाराधना 14 जुलाई से प्रारंभ होगी। जिसमें प्रातः 8 बजे प्रभावना श्री राजेन्द्र सरू पोषधाला भवन, 8.15 बजे चल समारोह, 9 बजे श्री सिद्धी तप तपस्वियों द्वारा सामूहिक गहूली, गुरूवंदन एवं पच्चखाण ग्रहण एवं 9.15 बजे से प्रवचन होंगे। 

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