आचार्य देवेष श्री ऋषभचन्द्रसूरीजी महाराज के बावन जिनालय में चातुर्मास में प्रवचन हुए प्रारंभ

JHABUA ABHITAK

अमित शर्मा
झाबुआ । हमारा अतित कितना भी काला रहा हो किन्तु हमारा वर्तमान हमेा ही धवल होना चाहिये । कुछ व्यक्ति जो गलियों में आवारा गर्दी करते रहे हो, वे नेता बन जाते है और उनके पास अधिकार और सत्ता मिल जाती है तो उनका अतीत कोई नही देखता है ।नमम उन्हीका किया जाता है जिनका वर्तमान अच्छा हो । वर्तमान को ही हर समय सम्मान मिलता है। अतित को यदि देखा जाता तो वाल्मीकी के वर्तमान में उनको स्मरण नही किया जाता, उनको पूजा नही जाता । इसलिये हम सभी को अपने अतीत को भूल कर वर्तमान को ही स्मरण रखा जाना चाहिये । किसी भी परिवार, किसी भी समाज, किसी भी राट्र मे एकता लाना है तो सभी को एक स्वरूप  होकर जीना पडेगा ।समय एवं परिस्थितिया ही बदलाव करती है। जीएसटी को लागू करना राट्र उत्थान के लिये जरूरी है इससे दे की आर्थिक व्यवस्था दुरूस्त होगी इसमे सभी को साथ देना चाहिये । व्यक्ति को हमेशा वर्तमान के साथ जीवन जीना सीखना चाहिये अतीत को पकड कर नही बैठना है । यदि हम वर्तमान के साथ जियेगें, सभी के साथ अच्छा बर्ताव करेगें , सभी से प्रेम भावना के साथ व्यवहार करेगें तभी हमारा जीना सार्थक है और यह वही कर सकता है जिसे वास्तव मे जीना आता है। उक्त प्रभावी,ज्ञानवर्धक एवं जीवन में उतारने वाली बात मंगलवार को स्थानीय बावन जिनालय के सभागार में चातुर्मास निमित्ते पधारे परमपूज्य,शासन प्रभावक, जीवदया प्रेमी श्री मद्वियज  आचार्य ऋाभचन्द्रसूरीवरजी मसा. ने धर्मसभा में श्रावक श्राविकाओं को संबोधित करते हुए कहीं । 


उन्होने पूज्य साध्वी पुपाश्रीजी मसा की 18 वीं पूण्यतिथि पर आयोजित गुणनुवाद एवं श्रद्धाजंलि सभा के अवसर पर कहा कि किसी भी अच्छी आत्मा के गुण गाने, उनका बखान करने से हमारे अन्दर भी गुण भावना का प्रार्दूभाव होता है । आत्मा का सकाराम्त्मक विकास होना प्रारंभ हो जाता है। ऐसे विभितियों की वाणी का स्मरण करके की गई प्रार्थना से हमेा ही सकारात्मक उर्जा पैदा होती है। देवताओं का नखाा वर्णन एवं उनकी हर छबि का बखान गुणानुवाद करने से एक अलौकिक आत्मीय आनन्द की अनुभूति मिलती है । व्यक्ति के शरीर नही अपीतु उसकी वाणी, उसके चरित्र, उनके आचरण का गुणगान किया जाना चाहिये । पूज्य पुपाश्री महाराज के साथ 35 र्वा के आध्यत्मिक संग का सस्मरण सुनाते हुए आचार्य देवे ने कहा कि उनका मार्गर्दान मिलता रहा है और वे हमेा समाज के प्रति सद्चिंतनमे जुटी रही । आचार्य देवे ने आगे कहा कि उनमे ज्ञान साधना इतनी अधिक थी अस्वथ रहने के बाद भी वे समाज के उत्थान के लिये अपना सहयोग देती रही । उनके साहित्य अनुभव धर्म जागरण को विस्मृत नही किया जासकता है ।उन्होने हर विय का अध्ययन किया अनेको चातुर्मास किये तथा अपनी ियाओं को भी गुणों से परिपूर्ण किया । पूरे दे में करीब 18 से अधिक राज्यों में उन्होने भ्रमण किया और सर्वत्र पवित्रता से आच्छादित किया ।इसलियें वर्तमान को कभी विस्मृत नही करना चाहिये और अतीत को कभी भुलना नही चाहिये ।

इस अवसर पर मुनि श्री रजतचन्द्रविजय जी मसा ने धर्मसंभा को संबोधित करते हुए पूज्य पुपाश्रीजी मसा की 18 वी पूण्यतिथि पर श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि सिद्धीतप आराधना होना चाहिये । इससे आठ भव से मुक्ति का मार्ग प्रास्त होता है ।उन्होने पूज्य पुपाश्रीजी का स्मरण करते हुए कहा कि ज्ञान कहीं से भी मिले उसे अंगीकार करना ही चाहिये । झाबुआ जैसी जगह पर पूज्य साध्वीजी की भावनानुसार आयंम्बिल भवन बना है । उनहोने 1955 से आज तक अपने उपदेो एवं सदसंदेो से  धर्म जागरण का कार्य किया उन्हे विस्तृत नही किया जासकता है । उन्होने आगे कहा कि संसार एक सृटि एवं दृटि है  गुणगान करने से कैवल्यज्ञान प्राप्त होता है । पूण्य तिथि को अपने  लाभ के रूप में ज्ञान के रूप में मनाना चाहिये ।
चातुर्मास समिति की अध्यक्ष संजय कांठी ने संचालन करते हुए कहा कि झाबुआ नगर में पूज्य आचार्य देवे  आदि ठाणा एवं साध्वी मंडल का सानिध्य प्राप्त होना नगर के लिये गौरव का क्षण हे । चार माह तक झाबुआ की धर्मधरा तीर्थ स्वरूपा हो जायेगी और हम सभी को ज्ञान गंगा प्राप्त का दुर्लभ अवसर मिला है । इस अवसर पर श्री संघ के अध्यक्ष धर्मचन्द्र मेहता ने ने साध्वी श्री पुपाश्रीजी को श्रद्धांजलि देते हुए गुणानुवाद करते हुए उनके द्वारा 1954, 1970 एवं 1986 में झाबुआ नगर में किये गये चातुर्मास के संस्मरण सुनाते हुए उन्हे प्रेम मूर्ति,धर्म जागृति की सन्दे वाहिका बताते हुए निर्विवाद साध्वी निरूपित किया ।  आोक राठौर ने अपने  संस्मरण सुनाते हुए उनसे माता तुल्य मिले स्नेह का जिक्र करते हुए उनकी भावनानुसार आयंबिल भवन की नगर में स्थापना के स्वप्न के पूरे होने की बात कहीं । सुश्रावक संजय मेहता ने कहा कि दीव्य पुरू, महापुरू का आगमन समाज के उत्थान के लिये होता है । साध्वीजी के जीवन वृत पर प्रका डालते हुए कहा कि चातुर्मास के माध्यम से उन्होने जो ज्ञान गंगा प्रवाहित की थी उसे आज भी स्मरण किया जाता है । तेज प्रकाश  कोठारी ने श्रद्धाजलि देते हुए गणानुवाद किया ।इस अवसर पर गुरूपूजन आोक राठौर, सोहनलाल कोठारी, बाबुलाल कोठारी, संतो नाकोडा, मुके रूनवाल, इन्द्रसेन संघवी आदि ने संपन्न किया । आचार्य देवे को कांबली ओढा कर धर्मचन्द्र मेहता, आोक राठौर रिंकू रूनवाल अभय धारीवाल, आोक कटारिया मनोहर मोदी, सूर्या कांठी, मुके संघवी  आदि ने स्वागत किया । इस अवसर पर साध्वी श्री अनुभवदृटाश्री जी ने श्री पुपाश्री जी को हुए उनकी आध्यात्मिक जीवनयात्रा एवं समाज को दिये गये उनके अनमोल विचारों के बारे में विस्तार से बताया ।ंआमील की आराधना का आयोजन करीब 40 लोगों ने दोपहर मे किया  इसमे मांगुबेन सकलेचा, सुरे, संजय, संदीप सकलेचा  परिवार द्वारा लिया गया । आमील मे श्रीमती मांगुबेन सकलेचा नीता  सुरेन्द्र कांठी, रीना राठौर, श्रद्धा राठौर, समता कांठी, सपना संघवी, आदि ने अनुकरणीय सेवा कर योगदान दिया ।दोपहर 2 बजे से सामुहिक सामयिक एवं नवकार महामंत्र के जाप किये गये ।

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